Saturday, May 5, 2007

इस जमाने से खौफ है हमको


 







दौर ए ज़माने को क्या कहूँ  कृष्ण...
















तलाश थी हमकों एक अशियानें की
आशियाँ जितने मिलें खौफ बारिस का था उनको

चाहत थी वफ़ा की बड़ी हमको
पर बेवफाई का खौफ था उनको

हसरत उनको भी बड़ी थी मेरी मोहब्बत की
पर जगहसाई का खौफ था उनको

जमाने कितने रंग दिखाता है हमें
पर भटक जानें का खौफ है हमको

इश्क होती है इबादत माशूक के बुत की
पर बुत के खो जाने का खौफ है हमको

दौर ए ज़माने को क्या कहूँ कृष्ण
अब तो इस आदमखाने से खौफ है हमको
या फ़िर इस जमाने से खौफ है हमको

कृष्ण कुमार मिश्र
लखीमपुर खीरी
9451925997

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