Tuesday, January 28, 2014

मेरे शिद्दत से बुलाने पर भी वो न आये



जूनून ए इश्क की रोशन मशालों की तपिश से !

शम्स भी अब्र के चिलमन में जा बैठा ! कृष्ण



शिद्दते ए इश्क की रौनक को वो क्या जाने !

जिनको रिफाकत में भी बाज़ार दिखता है ! कृष्ण



गैरवाजिब तो न था उसको चाहना मेरा !

उसकी रंगीन तबीयत ने इश्क को कुफ्र बना दिया ! कृष्ण



चलो फुर्सत मिली जान ओ दिल को तेरी आशनाई से !

जब से पोशीदा हुए हो तुम मुझसे बड़ी रानाई से! कृष्ण



बेवफाई ने मोहब्बत के गुलिस्ताँ से हमें बर्खाश्त कर डाला।

अब तो बस गम के सिजरे से रिफाकत कर रहे हैं हम। कृष्ण




काश मेरे अश्क अलकमर से रोशन होते शबनम की तरह !

तो आइन्दा मेरे चश्म ए तर गम ए दर्द में नम नहीं होते ! कृष्ण !


जवाब मिलते मुझे मेरे सवालों के उनसे। 
अगर उनमे कुँए सी गहराई होती। कृष्ण      

मेरे शिद्दत से बुलाने पर भी वो न आये।
 सुना है आजकल उनने किसी और से आशनाई कर ली। कृष्ण 

कृष्ण कुमार मिश्र "कृष्ण"

No comments: